बोफोर्स मामला: निजी जासूस से जानकारी मांगने के लिए अमेरिका को एलआर भेजेगी सीबीआई
नई दिल्ली:
बोफोर्स का जिन्न एक बार फिर निकला है... सीबीआई बोफोर्स मामले में निजी जासूस माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगने के लिए जल्द ही अमेरिका को एक न्यायिक अनुरोध भेजेगा. हर्शमैन ने 1980 के दशक के 64 करोड़ रुपये के कथित बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी भारतीय एजेंसियों के साथ साझा करने की इच्छा व्यक्त की थी. सीबीआई ने एक विशेष अदालत को भी इस घटनाक्रम के बारे में सूचित किया है,जो मामले में आगे की जांच के लिए एजेंसी की याचिका पर सुनवाई कर रही है. यह मामला 1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान स्वीडन की कंपनी ‘बोफोर्स' के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से जुड़ा है.
अमेरिका को 'लेटर रोगेटरी' भेजेगा भारत
सीबीआई अधिकारियों ने बताया कि ‘लेटर रोगेटरी' (एलआर) भेजने की प्रक्रिया इस वर्ष अक्टूबर में शुरू की गई थी और अमेरिका को औपचारिक अनुरोध भेजने में लगभग 90 दिन लगने की संभावना है,जिसका उद्देश्य कथित रिश्वत मामले की आगे की जांच के लिए सूचना प्राप्त करना है. लेटर रोगेटरी एक लिखित अनुरोध है जो एक देश की अदालत द्वारा किसी आपराधिक मामले की जांच या अभियोजन में सहायता प्राप्त करने के लिए दूसरे देश की अदालत को भेजा जाता है.
हर्शमैन नेइंटरव्यू में क्या कहा थाहर्शमैन अमेरिका स्थित निजी जासूसी फर्म फेयरफैक्स के अध्यक्ष हैं,उन्होंने टीवी इंटरव्यू में दावा किया था कि जब राजीव गांधी को स्विस बैंक खाता में जमा रकम के बारे में पता चला था,तो वे "क्रोधित" थे. हर्शमैन को टेलीविजन चैनलों पर यह कहते हुए देखा गया कि जब 'हमारे काम का खुलासा हुआ' तो राजीव गांधी बहुत परेशान हो गए. इसके बाद उन्होंने परिस्थितियों की जांच के लिए एक सुप्रीम कोर्ट आयोग का गठन किया था,ताकि तत्कालीन वित्त मंत्री वी पी सिंह की ओर से ‘फेयरफैक्स' की सेवाएं लेने की परिस्थतियों की जांच की जा सके.
हाई कोर्ट ने राजीव गांधी को कर दिया था बरी
दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस मामले में बरी कर दिया था. कोर्ट ने एक साल बाद राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में हिंदुजा बंधुओं सहित शेष आरोपियों के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था. इतालवी व्यवसायी एवं कथित तौर पर रिश्वत मामले में बिचौलिये ओत्तावियो क्वात्रोची को 2011 में एक अदालत ने बरी कर दिया था. अदालत ने सीबीआई को उनके खिलाफ अभियोजन वापस लेने की अनुमति दी थी.
करगिल युद्ध के दौरान हॉवित्जर तोपों ने निभाई थी अहम भूमिका
1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान स्वीडन की कंपनी ‘बोफोर्स' के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोप लगे थे. यह सौदा 400 हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए किया गया था,जिसने करगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह मामला 2011 में बंद कर दिया गया था. हालांकि,इस मामले पर उस समय काफी राजनीति हुई थी. कांग्रेस पर विपक्षियों ने कई आरोप लगाए थे.
कौन है जासूस हर्शमैन
‘फेयरफैक्स ग्रुप' के प्रमुख हर्शमैन 2017 में निजी जासूसों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे. इस दौरान वह विभिन्न मंचों पर दिखाई दिए और उन्होंने आरोप लगाया कि घोटाले की जांच कांग्रेस सरकार द्वारा पटरी से उतार दी गई थी. हर्शमैन ने कहा है कि वह सीबीआई के साथ विवरण साझा करने के लिए तैयार हैं. एजेंसी ने विशेष अदालत को सूचित किया कि हर्शमैन के खुलासे के बाद,वह जांच को फिर से खोलने की योजना बना रही है.