12-20
निजी कंपनियों में कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षण से जुड़े विधेयक को कर्नाटक सरकार ने ठंडे बस्ते में डाला
इस विधेयक को बृहस्पतिवार को विधानसभा में पेश किए जाने की संभावना थी.
बेंगलुरु:
कारोबार और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोगों की तीखी आलोचना के बाद कर्नाटक सरकार ने बुधवार को उस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया जिसमें निजी क्षेत्र में कन्नड़ भाषियों के लिए आरक्षण अनिवार्य किया गया था. कर्नाटक राज्य उद्योग,कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए रोजगार विधेयक,2024 को सोमवार को राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी. इस विधेयक को बृहस्पतिवार को विधानसभा में पेश किए जाने की संभावना थी.
मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया,"निजी क्षेत्र के संस्थानों,उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ भाषियों को आरक्षण देने के लिए मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. इस पर आगामी दिनों में फिर से विचार किया जाएगा और निर्णय लिया जाएगा."
इससे पहले,कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने भी 'एक्स' पर पोस्ट किया था,उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ भाषी लोगों के लिए आरक्षण लागू करने का विधेयक अभी तैयारी के चरण में है. मंत्रिमंडल की अगली बैठक में व्यापक चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा." विधेयक में कहा गया,"किसी भी उद्योग,कारखाने या अन्य प्रतिष्ठानों को प्रबंधन श्रेणियों में 50 प्रतिशत और गैर-प्रबंधन श्रेणियों में 70 प्रतिशत स्थानीय उम्मीदवारों की नियुक्ति करनी होगी."
कारोबार क्षेत्र की हस्तियों ने प्रस्तावित कोटे पर आपत्ति जताते हुए इसे 'फासीवादी' और 'अदूरदर्शी' बताया. जानेमाने उद्यमी एवं इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टी.वी. मोहनदास पई ने विधेयक को 'फासीवादी' करार दिया. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा,"इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए. यह पक्षपातपूर्ण,प्रतिगामी और संविधान के विरुद्ध है. अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आई है-एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी...?"
फार्मा कंपनी 'बायोकॉन' की प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ ने कहा,"एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है और हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना है. हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए..."
एसोचैम की कर्नाटक इकाई के सह अध्यक्ष आर.के. मिश्रा ने 'एक्स' पर पोस्ट में तंज कसते हुए कहा,"कर्नाटक सरकार का एक और प्रतिभावान कदम. स्थानीय स्तर पर आरक्षण और हर कंपनी की निगरानी के लिए सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाना. इससे भारतीय आईटी और जीसीसी भयभीत होंगे. अदूरदर्शी."
कर्नाटक का यह कदम हरियाणा सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयक जैसा ही है,जिसमें राज्य के निवासियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया था. हालांकि,पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 17 नवंबर 2023 को हरियाणा सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)